अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी |
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं
गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं
अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको
रिश्ताए-दर्द समझकर ही निभा लो मुझको
चूम लेते हो जिसे देख के तुम आईना
अपने चेहरे का वही अक्स बना लो मुझको
मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको
छाँओं भी दूँगा, दवाओं के भी काम आऊँगा
नीम का पौदा हूँ, आँगन में लगा लो मुझको
दोस्तों शीशे का सामान समझकर बरसों
तुमने बरता है बहुत अब तो संभालो मुझको
गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा
तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको
एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको
रिश्ताए-दर्द समझकर ही निभा लो मुझको
चूम लेते हो जिसे देख के तुम आईना
अपने चेहरे का वही अक्स बना लो मुझको
मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको
छाँओं भी दूँगा, दवाओं के भी काम आऊँगा
नीम का पौदा हूँ, आँगन में लगा लो मुझको
दोस्तों शीशे का सामान समझकर बरसों
तुमने बरता है बहुत अब तो संभालो मुझको
गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा
तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको
एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको
बिना मतलब किसी से अब कोई नहीं मिलता
हर मुलाक़ात में मक़सद भी छुपा होता है
हर मुलाक़ात में मक़सद भी छुपा होता है
उम्र भर साथ निभाएँगे सभी कहते हैँ
ऐसा दिखलाओ हक़ीकत मेँ कहाँ होता है
ऐसा दिखलाओ हक़ीकत मेँ कहाँ होता है
दिल मेरा दिल
उसकी आदत फ़कीर जैसी है
कुछ भी कह लो खफ़ा नहीं होता
उसकी आदत फ़कीर जैसी है
कुछ भी कह लो खफ़ा नहीं होता
याद आते न शबनमी लम्हे
ज़ख़्म कोई हरा नहीं होता
ज़ख़्म कोई हरा नहीं होता
क़ुर्बत की साअतों में भी कुछ दूरियाँ-सी हैं
साया किसी का उन के मिरे दर्मियान है
साया किसी का उन के मिरे दर्मियान है
आँखों में तिरे ख़्वाब न दिल में तिरा ख़याल
अब मेरी ज़िन्दगी कोई ख़ाली मकान है
अब मेरी ज़िन्दगी कोई ख़ाली मकान है