आपसे प्यार हुआ जाता है
खेल दुश्वार हुआ जाता है
दिल जो हर क़ैद से घबराता था
ख़ुद गिरफ़्तार हुआ जाता है
तूने क्यूँ प्यार से देखा मुझको
दर्द बेदार हुआ जाता है
इस तमन्ना में कि तुम दोगे सज़ा
दिल गुनाहगार हुआ जाता है ।
अजब है दास्ताँ तेरी ऐ ज़िंदगी
कभी हँसा दिया रुला दिया कभी
अजब है दास्ताँ तेरी ऐ ज़िंदगी
तुम आई माँ की ममता लिये तो मुस्कुराये हम
के जैसे फिर से अपने बचपन में लौट आये हम
तुम्हारे प्यार के
इसी आँचल तले
फिर से दीपक जले
ढला अंधेरा जगी रोशनी
अजब है दास्ताँ ...
मगर बड़ा है संगदिल है ये मालिक तेरा जहाँ
यहाँ माँ बेटो पे भी लोग उठाते है उंगलियाँ ) २
कली ये प्यार की
झुलस के रह गई
हर तरफ़ आग थी
हँसाने आई थी रुलाकर चली
अजब है दास्ताँ ...
कभी हँसा दिया रुला दिया कभी
अजब है दास्ताँ तेरी ऐ ज़िंदगी
तुम आई माँ की ममता लिये तो मुस्कुराये हम
के जैसे फिर से अपने बचपन में लौट आये हम
तुम्हारे प्यार के
इसी आँचल तले
फिर से दीपक जले
ढला अंधेरा जगी रोशनी
अजब है दास्ताँ ...
मगर बड़ा है संगदिल है ये मालिक तेरा जहाँ
यहाँ माँ बेटो पे भी लोग उठाते है उंगलियाँ ) २
कली ये प्यार की
झुलस के रह गई
हर तरफ़ आग थी
हँसाने आई थी रुलाकर चली
अजब है दास्ताँ ...
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
क्या करे वो जान कर अंजान है -
ऊपर वाल जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
ऊपर वाल जानकर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
अब तो हँसके अपनी भी क़िस्मत को चमका दे
कानों में कुछ कह दे जो इस दिल को बहला दे
ये भी मुशकिल है तो क्या आसान है
ऊपर वाल जान कर अन्जान है ...
सर पे मेरे तू जो अपना हाथ ही रख दे
फिर तो भटके राही को मिल जायेंगे रस्ते
दिल की बस्ती बिन तेरे वीरान है
ऊपर वाल जानकर अन्जान है ...
दिल ही तो है इस ने शायद भूल भी की है
ज़िंदगी है भूल कर ही राह मिलती है
माफ़ कर बन्दा भी इक इन्सान है
ऊपर वाल जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
क्या करे वो जान कर अंजान है -
ऊपर वाल जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
ऊपर वाल जानकर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
अब तो हँसके अपनी भी क़िस्मत को चमका दे
कानों में कुछ कह दे जो इस दिल को बहला दे
ये भी मुशकिल है तो क्या आसान है
ऊपर वाल जान कर अन्जान है ...
सर पे मेरे तू जो अपना हाथ ही रख दे
फिर तो भटके राही को मिल जायेंगे रस्ते
दिल की बस्ती बिन तेरे वीरान है
ऊपर वाल जानकर अन्जान है ...
दिल ही तो है इस ने शायद भूल भी की है
ज़िंदगी है भूल कर ही राह मिलती है
माफ़ कर बन्दा भी इक इन्सान है
ऊपर वाल जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो लग जा गले से ... हमको मिली हैं आज, ये घड़ियाँ नसीब से जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो पास आइये कि हम नहीं आएंगे बार\-बार बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार\-ज़ार आँखों से फिर ये प्यार कि बरसात हो न हो शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो लग जा गले कि फिर ये हस्सीं रात हो न हो शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो लग जा गले कि फिर ये हस्सीं रात हो न हो