बात उस वक़्त की है जब गुलज़ार साहब फिल्म इजाज़त का निर्माण कर रहे थे। फिल्म के गीत लिखने के बाद गुलज़ार साहब काफी उत्साहित थे। उन गीतों को संगीत का जामा पहनाने की ज़िम्मेदारी वो पंचम दा को देना चाहते थे। पंचम दा के पास पहुँच कर जब उन्होंने वो गीत उन्हें सुनाया तो पंचम दा का गुस्सा सातवें आस्मां पर पहुँच गया, उन्होंने गुलज़ार साहब को गुस्से से कहा कि क्या वाहियात बोल लिखे हैं? कल अगर तुम कोई अख़बार उठाके ले आओगे और मुझसे कहोगे कि इसके लिए संगीत तैयार करो तो क्या मुझे वो भी करना पड़ेगा? पंचम दा के गुस्से की लौ ठंडा होने पर गुलज़ार साहब ने बड़े आत्म विश्वास के साथ उन्हें कहा कि इस गीत का संगीत तुम्ही ही दोगे और ये गीत इतिहास रचेगा। और शब्दों की इस जादूगर की ये बात सच निकली, वाकई वो गीत बना, हिट हुआ और उसने इतिहास भी रचा । फ़िल्म इजाज़त के इस गीत ने न सिर्फ फिल्म प्रेमियों के दिलों पर राज किया बल्कि राष्ट्रीय पुरसकार हासिल कर अमर गीतों की श्रेणी में अपनी जगह भी सुरक्षित कर ली । और वो गीत था......
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं
सावन के कुछ भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पडी हैं
वो रात बुझा दो, मेरा सामान लौटा दो
पतझड़ हैं कुछ,
हैं ना ...
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहन के लौटाई थी
पतझड़ की वो शांख अभी तक काँप रही हैं
वो शांख गिरा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो...
एक अकेले छतरी में जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गिले, सुखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद, बिस्तर के पास पडा हो
वो भिजवा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो...
एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली मेहंदी की खुशबू, झूठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी, सब याद करा दो
सब भिजवा दो,
मेरा वो सामन लौटा दो...
एक इजाजत दे दो बस
जब इस को दफ़नाऊँगी
मैं भी वही सो जाऊँगी...
♥गुलज़ार साहिब♥