Pyaar itnaa naa kar..

Pyar Itna Na Kar - Shreya Ghoshal Powered by SongsPK.co

Monday 25 March 2013

देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आये.......मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा

ज़िदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है

एक ज़रा सा ग़म-इ-दौरान का भी हक है जिस पर
मैंने वो सांस भी तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझ पे हो जाऊँगा कुर्बान तुझे चाहूँगा
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

अपने जज़्बात में नगमात रचाने के किये
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करून?
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बनके निगेहबान तुझे चाहूंगा
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा

तेरी हर चाप से जलते हैं खायालूँ में चिराग
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छूलूं तो ए जान-इ-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आये
तू बहारों का है उन्वान तुझे चाहूंगा
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा
    


शायद छुपा हो इस मैं कहें नाम आपका....दुनियाँ से चुपके मेरी ग़ज़ल गुनगुनाईए






वो दिल नवाज़ है नज़र शनाज़ नही
मेरा इलाज मेरे चरागर क पास नही

तारप रहे हैं ज़बान पर कई सवाल मगर
मेरे लिए कोई शयन-ए-इल्तमस नही

तेरे उजलों मैं भी दिल कांप कांप उठता है
मेरे मिज़ाज को असुदगी भी रस नही

कभी कभी जो तेरे क़ुर्ब मैं गुज़रे थे
अब उन दिनों का तसवउर भी मेरे पास नही

गुज़र रहे हैं अजब मरहलों से दीदा-ओ-दिल
सहर की आस तो है ज़िंदगी की आस नही

मुझे ये दर है क तेरी आरज़ू ना मिट जाए
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नही
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उगलियां उठेंगी सुखे हुए बालों की तरफ’
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ’
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फि’करे कसे जायेंगे
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
‍-कफ़ील आज़र
[If the word gets out, it will get to far off places,
People will ask the reason for your sadness,
They will also ask why are you so perturbed,
Fingers will be pointed towards your dry hair,
They will also have a look at past years,
They will also talk in satirical way about your bangles,
They will also make fun of your trembling hands,
People are mean, they will try to make a point about everything,
They will deliberately bring my name during conversations,
Don't take their words to your heart,
Otherwise they will understand from your facial expressions,
Whatever happens, don't ask them any questions,
Don't talk to them about me,
If the word gets out, it will get to far off places !]







गुलो मे राग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आ ओ के गुलशन का कार-ओ-बार चले

क़ाफास उदास है यारो सबा से कुच्छ तो कहो
कही तो बाहर-ए-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिजरां
हमारे अश्क तेरी आकबत संवार चले

मकाम 'फ़ैज़' कोई राह मे जाँचा ही नही
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

कभी तो सुबह तेरे कुज-ए-लब से हो आगाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्काबार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएगे गम-गुसार चले

हुज़ूर-ए-यार हूइ दफ़्तर-ए-जुनून की तलब
गिरह मे ले के गिरेबान का तार तार चले
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शायर : फ़िज़ अली फ़िज़
फनकार : मेहँदी हसन




दिल में एक ल़हेर सी उठी हैं अभी
कोई ताज़ा हवा चली हैं अभी

शोर बरपा है खाना ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी हैं अभी

कुच्छ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोठ भी नयी हैं अभी

भारी दुनियाँ में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी हैं अभी

तू शरीक-ए-सुख्हन नहीं हैं तो क्या
हम सुख्हन तेरी खामोशी हैं अभी

याद के बेनिशान जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही हैं अभी

शहेर के बेचराग़ गलियों में
ज़िंदगी तुझ को ढ्नडती हैं अभी

सो गये लोग उस हवेली के
एक खिडकी मगर खुली है अभी

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर मैं रात जागती है अभी

वक़्त अच्छा भीइ आएगा 'नसीर'
गम ना कर ज़िंदगीइ पा.डी है अभी
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शायर : नसीर काज़मी
फनकार/मौसीकार : गुलाम अली


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अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारों
मैं अपने सायँ से कल रात दर गया यारो

हर एक नक़्श तमन्ना का हो गया धुंधला
हर एक ज़कं मेरे दिल का भर गया यारो

भटक रही थी जो कश्ती वो गाक़र-ए-आब हुई
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतार गया यारो

वो कौन था वो कहा का था क्या हुआ था उसे
सुना है आज कोई शाकस मार गया यारो
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ज़िंदगी में जब तुम्हारे गम नही थे
इतने तन्हा थे की हम भी हम नही थे

वक़्त पर जो लोग काम आए हैं अक्सर
अजनबी थे, वो मेरे हमदम नही थे

बेसबब था तेरा मिलना रहगुज़ार में
हादसे हर मोड़ पर कुछ कम नही थे

हमने ख्वाबो में खुदा बनकर भी देखा
आप थे, बाहों में दो आलम नही थे

सामने दीवार थी खुद्दारियों की
वरना रास्ते प्यार के पूराकम नही थे
____________

नज़्म उलझी हुई है सीने में .....किताब-ए-माज़ी के पन्ने उलट के देख ज़रा.....ना जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले


 

 

                                                       

          

                            

रोया करेंगे आप भी

रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह

ना ताब हिज्र में है ना आराम वस्ल में
कमबख्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह

गर चुप रहे तो ग़म-ए-हिज्राँ से छूट जाएँ
कहते तो हैं वो भले की लेकिन बुरी तरह

ना जाए वां बने है ना बिन जाए चैन है
क्या कीजिये हमें तो है मुश्किल सभी तरह

लगती है गालियाँ भी तेरी मुझे क्या भली
कुर्बान तेरे, फिर मुझे कह ले इसी तरह

हूँ जां-ए-बलब बुतां-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहां में जीते हैं 'मोमिन' इसी तरह
                                                      ----- मोमिन खान मोमिन 


नज़्म उलझी हुई है सीने में

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते फिरते हैं तितलियों कि तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे कागज़ पे लिख के नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी 
----- गुलज़ार

                                                                

मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकले

 

मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकले               
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले

किताब-ए-मंजिल का औराक उलट के देख ज़रा
न जाने कौन सा सफ़ाह मुडा हुआ निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फासला निकले
                                               ----- वसीम बरेलवी



हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त कि शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते

जिसकी आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालो के लिए दिल नहीं थोड़ा करते

लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख नहीं मोड़ा करते
वक़्त कि शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते
                                                       
                                       ------ गुलज़ार





इस मोड़ से जाते हैं

इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त क़दम रस्ते
कुछ तेज क़दम राहें

पत्थर कि हवेली को
शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं
                                                    
आंधी कि तरह उड़ कर
इक राह गुज़रती है
शर्माती हुई कोई
क़दमों से उतरती है

इन रेशमी राहों में
इक राह तो वह होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है

इक दूर से आती है
पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी
रूकती है न चलती है

ये सोच के बैठी हूँ
इक राह तो वह होगी

तुम तक जो पहुँचती है 
इस मोड़ से जाती है 
                       ---- गुलज़ार 




बहुत मिला न मिला जिंदगी से

बहुत मिला न मिला जिंदगी से ग़म क्या है
मता-ए-दर्द बहम है तो बेश-ओ-कम क्या है

हम एक उम्र से वाकिफ़ हैं अब न समझाओ
के लुत्फ़ क्या है मेरे मेहरबां सितम क्या है

करे न जग में अलाव तो शेर किस मक़सद
करे न शहर में जल-थल तो चश्म-ए-नम क्या

अजल के हाथ कोई आ रहा है परवाना
ना जाने आज कि फेहरिश्त में रक़म क्या है

सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
बहुत सही ग़म-ए-गेत्ती शराब कम क्या है

लिहाज़ में कोई कुह दूर साथ चलता है
वगरना दहर में अब खिज्र का भरम क्या है
                                                   ---- फैज़ अहमद फैज़



अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ,

ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें ,

तू खुदा है न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा 
दोनों इंसान हैं तो क्यों इतने हिज़ाबों में मिलें ,

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें ,

आज हम दार पर खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो जमाने को नसीबों में मिले ,

अब न वो मैं हूँ न तू है ना वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शक्श तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़ 



मिट गया जब मिटाने वाला

मिट गया जब मिटाने वाला फिर सलाम आया तो क्या आया
दिल की बरबादी के बाद उन का पयाम आया तो क्या आया

छूट गईं नबज़ें उम्मीदें देने वाली हैं जवाब
अब उधर से नामाबर लेके पयाम आया तो क्या आया

आज ही मिलना था ए दिल हसरत-ए-दिलदार में
तू मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या आया

काश अपनी ज़िन्दगी में हम ये मंज़र देखते
अब सर-ए-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या आया

सांस उखड़ी आस टूटी छा गया जब रंग-ए-यास
नामबार लाया तो क्या ख़त मेरे नाम आया तो क्या

मिल गया वो ख़ाक में जिस दिल में था अरमान-ए-दीद
अब कोई खुर्शीद-वश बाला-इ-बाम आया तो क्या आया

                                                               ----- दिल शाहजहाँपुरी
 
 
 

मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ


मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर
मुझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है
सहम के सब आरज़ुएँ कोनों में जा छुपी हैं
लवें बुझा दी हैं अपने चेहरों की, हसरतों ने
कि शौक़ पहचानता ही नहीं
मुरादें दहलीज़ ही पे सर रख के मर गई हैं
मैं किस वतन की तलाश में यूँ चला था घर से
कि अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर 
                                                        ----- गुलज़ार
 
 

एक पुराना मौसम लौटा

एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तन्हाई भी

यादों कि बौछारों से जब पलकें भीगने लगती है
कितनी सौंधी लगती है तब मांजी की रुसवाई भी

दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी

ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उनकी बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
                                                         ---- गुलज़ार

जिंदगी यूँ हुई बसर तनहा

जिंदगी यूँ हुई बसर तनहा
काफिला साथ और सफ़र तनहा            

अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तनहा

रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तनहा

दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तनहा

हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फ़िर न जाने गए किधर तनहा
                                     ---- गुलज़ार 


दिल की बात लबों तक लाकर अब तक दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं

बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आसू बहते हैं

एक ह्यूम आवारा केहेना कोई बड़ा इल्ज़ाम नही
दुनिया वाले दिल वालों को और बहूत कुछ कहते हैं

जिसकी खतीर शहर भी चोरदा जिसके लिए बदनाम हुए
आज वोही हुंसे बेगाने बेगाने से रहते हैं

वो जो अभी रहगीज़ार से चक-ए-ग़रेबान गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को "जालीब जालीब कहते हैं
___________________हबीब ज़ालीब
 
 
 
 
 
 
तेरी बात ही सुनाने आये, दोस्त भी दिल ही दुखाने आये
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं तेरे आने का ज़माने आये
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हो आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिल आ गया हूँ मैं

महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई     
हमने बचाई लाख मगर फिर उधर गई

उनकी नज़र में कोई तो जादू ज़ुरूर है
जिस पर पड़ी, उसी के जिगर तक उतर गई

उस बेवफा की आँख से आंसू झलक पड़े
हसरत भारी निगाह बड़ा काम कर गई

उनके जमाल-इ-रुख पे उन्ही का जमाल था
वोह चल दिए तो रौनक-इ-शाम-ओ-सहर गई

उनको खबर करो के है बिस्मिल करीब-इ-मर्ग
वोह आयेंगे ज़ुरूर जो उन तक खबर गई
_________________________

शायर : आगा बिसमिल
मौसीकार और फनकार : गुलाम अली
 
 
 
 
 
रात जो तूने दीप बुझाएँ मेरे थे
अश्क जो तारीकी ने छुपायेन मेरे थे

कैफ़-ए-बहाराँ महार-ए-निगारान लुत्फ़-ए-जुनून
मौसम-ए-गुल के महके साए मेरे थे

मेरे थे वो काब जो टुउने च्चीं लिए
गीत जो होंठों पर मुरझाए मेरे थे

आँचल आँचल गेसूउ गेसूउ चमन चमन
सारी कूशब्ुऊ मेरी साए मेरे थे

साहिल साहिल लहरें जिसको धुँधती हैं
माज़ी के वो महके साए मेरे थे
_____________

मिराज-ए-ग़ज़ल
मौसिकार : गुलाम अली
फनकार : आशा भोसले


धुवा बनाके फ़िज़ाओ में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था किसी ने ब्झहा दिया मुझको

खड़ा हून आज भी रोटी के चार हरफ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको

सफेद संग की चादर लपेट कर मुझपर
फसीने शहर से किसी ने सज़ा दिया मुझको

मैं एक ज़ररा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीन पर गिरा दिया मुझको
_______________

मौसीकार : जगजीत सिंग

फनकार : लता मंगेशकर            




बिन बारिष बरसात ना होगी
रात गयी तो रात ना होगी

राज़-इ-मोहब्बत तुम मत पूछो
मुझसे तो ये बात ना होगी

किस से दिल बहलाओगे तुम
जिस दम मेरी ज़ात ना होगी

अश्क भी अब ना पैद हुए हैं
शायम अब बरसात ना होगी

यूं देखेंगे आरिफ उसको
बीच में अपनी ज़ात ना होगी
______________

शायर : खालिद महमूद आरिफ़
मौसीकार/फनकार : गुलाम अली








Sunday 24 March 2013

भरे गले की देहरी में यूँ अटका है पांखी ....

अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं


अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको
रिश्ताए-दर्द समझकर ही निभा लो मुझको

चूम लेते हो जिसे देख के तुम आईना
अपने चेहरे का वही अक्स बना लो मुझको

मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको

छाँओं भी दूँगा, दवाओं के भी काम आऊँगा
नीम का पौदा हूँ, आँगन में लगा लो मुझको

दोस्तों शीशे का सामान समझकर बरसों
तुमने बरता है बहुत अब तो संभालो मुझको

गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा
तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको

एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको
 
बिना मतलब किसी से अब कोई नहीं मिलता
हर मुलाक़ात में मक़सद भी छुपा होता है
उम्र भर साथ निभाएँगे सभी कहते हैँ
ऐसा दिखलाओ हक़ीकत मेँ कहाँ होता है
 
 
दिल मेरा  दिल
उसकी आदत फ़कीर जैसी है
कुछ भी कह लो खफ़ा नहीं होता
  
याद आते न शबनमी लम्हे
ज़ख़्म कोई हरा नहीं होता
 
क़ुर्बत की साअतों में भी कुछ दूरियाँ-सी हैं
साया किसी का उन के मिरे दर्मियान है
आँखों में तिरे ख़्वाब न दिल में तिरा ख़याल
अब मेरी ज़िन्दगी कोई ख़ाली मकान है

बदन तेरा है उसमें जान मेरी है तुझे क्या ये कभी महसूस होती है


अगर मैं जानती डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता .....





Tahira Syed's voice......


                                                       RUNA LAILA JEE"S VOICE
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम  न सही, फिर भी कभी तो
रस्मों-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम         

तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आखिरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
ANURADHA JEE"S VOICE
MEHDI HASSAN SAHIB

भूल जाओ जो तुम, भूल जाएँगे हम ....



कैसे कहें अलविदा महरम.. कैसे बने अजनबी हमदम.. भूल जाओ जो तुम भूल जायेंगे हम ये जूनून करके लम्हे नम ... कैसे कहें अलविदा महरम... कैसे कहें ...
जिए जाओ तुम जिए जायेंगे हम यादों के ज़ख़्म पर ज़िन्दगी मरहम ... कैसे कहें अलविदा महरम... कैसे बने अजनबी हमदम .... 
 

"कितनी बातें याद आती हैं"



कितनी बातें याद आती हैं,
तस्वीरें सी बन जाती हैं,
मैं कैसे इन्हें भूलूं,
दिल को क्या समझाऊँ
क्यों पूरी हो न पाई दास्ताँ,
कैसे आई हैं ऐसी दूरियां?


कितनी बातें कहने की हैं,
होठों पर जो सहमी सी हैं,
इक रोज़ इन्हें कह दूँ,
क्यों ऐसे गुमसुम हूँ,
क्यों पूरी हो न पाई दास्ताँ,
कैसे आई हैं ऐसी दूरियां?

मन में मेरे बस हैं सवाल,
पर फिर भी हैं खामोशी,
तो कौन है किसका दोषी,
कोई क्या कहे?

कैसी उलझनों के ये जाल हैं,
जिनमें उलझा है दिल,
अब होना है क्या हासिल,
कोई क्या कहे?

दिल की हैं कैसी मजबूरियां,
खोय थे कैसे राहों के निशा,
क्यों पूरी हो न पाई दास्ताँ,
कैसे आई हैं ऐसी दूरियां?

क्यों गुमसुम है ये धरती, आसमान,
क्यों है खामोशी में डूबा ये जहाँ,
क्यों पूरी हो न पाई दास्ताँ,
कैसे आई हैं ऐसी दूरियां?

कितनी बातें याद आती हैं,
तस्वीरें सी बन जाती हैं,
मैं कैसे इन्हें भूलूँ,
दिल को क्या समझाऊँ,
क्यों पूरी हो न पाई दास्ताँ,
कैसे आई हैं ऐसी दूरियां?

तुम पुकार लो



The time has inflicted what a striking agony,You are not You, and I am not I !
Our restless hearts met in such a way as if we were never separated !Where I will go, I do not understand,I am living my life without any destiny!What I am searching for, I do not know,But my heart is always day dreaming

तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतज़ार हैं
ख्वाब चुन रही हैं रात  बेकरार हैं

होंठ पे लिए हुए, दिल की बात हम
जागते रहेंगे और, कितनी रात हम
मुफ्तसर सी बात है, तुम से प्यार हैं
तुम्हारा इंतज़ार हैं.. ..

दिल बहल तो जाएगा, इस ख़याल से
हाल मिल गया तुम्हारा, अपने हाल से
रात ये करार की, बेकरार हैं
तुम्हारा इंतज़ार हैं .. ..


 












वोह शाम कुछ अजीब थी, यह शाम भी अजीब है,
वोह कल भी पास पास थी वोह आज भी करीब है..
वोह शाम कुछ अजीब थी

झुकी हुई निगाहो में, कही मेरा ख़याल था
दबी दबी हंसी मे इक, हसी सा गुलाल था
मै सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वोह..
न जाने क्यो लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वोह
वोह शाम कुछ अजीब थी

मेरा ख़याल है अभी झुकी हुई निगाह मे
खुली हुई हसी भी है, दबी हुई सी चाह मे
मै जनता हू, मेरा नाम गुनगुना रही है वो
यही ख़याल है मुझे, के साथ आ रही है वो
वोह शाम कुछ अजीब थी, यह शाम भी अजीब है
वोह कल भी पास पास थी वोह आज भी करीब है
वोह शाम कुछ अजीब थी


















































































वक़्त ने किया क्या हंसीं सितम
तुम रहे न तुम हम रहे न हम
वक़्त ने किया...

बेक़रार दिल इस तरह मिले
जिस तरह कभी हम जुदा न थे
तुम भी खो गए, हम भी खो गए
एक राह पर चलके दो क़दम
वक़्त ने किया...

जाएंगे कहाँ पूछता नहीं
चल पड़े मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश है कुछ पता नहीं
बुन रहे हैं दिल ख़्वाब दम-ब-दम
वक़्त ने किया...




GYPSSY SOUL




Now it's time to put the past behind us
I want to see you shining like the sun
Always reaching higher, keep it all in mind
Now we got to take it all the way today

'cause I'm a runner with the wind
I'm a Gypsy Soul
I am calling you again
Now it's time to go
I'm a runner with the wind
I'm a Gypsy Soul
There will always be tomorrow
Gypsy Soul

I hear you say you want to stay with me now
There comes a day when you know which way to turn
Not very far until we're finally home
It's time for us to head on down that road again

'cause I'm a runner with the wind
I'm a gypsy soul
I am calling you again
Now it's time to go
I'm a runner with the wind
I'm a gypsy soul
There will always be tomorrow
I'm a gypsy soul



 


 
I got myself a threadbare gypsy soul
Likes to dance and drink and go wherever the wind blows
Got a little threadbare gypsy soul
Got a little threadbare gypsy soul

Got a little wild streak in my heart
I guess that i have had it since i heard the music start
I got a little wild streak in my heart
I got a little threadbare gypsy soul

I like to hear the highway sounds
And i don?t think that i?ll ever settle down
I can?t change and it?s a sin hope st. peter gonna let me in
Come on pete won?t you let me in?

I wear this cowboy hat upon my head
And you can take it off me some time after i am dead
Got a cowboy hat up on my head
Got a little threadbare gypsy soul

Any Soul That Drank the Nectar

Any soul that drank the nectar of your passion was lifted.
From that water of life he is in a state of elation.
Death came, smelled me, and sensed your fragrance instead.
From then on, death lost all hope of me. 



Any Lifetime

Any lifetime that is spent without seeing the master
Is either death in disguise or a deep sleep.
The water that pollutes you is poison;
The poison that purifies you is water.

All through eternity

All through eternity
Beauty unveils His exquisite form
in the solitude of nothingness;
He holds a mirror to His Face
and beholds His own beauty.
he is the knower and the known,
the seer and the seen;
No eye but His own
has ever looked upon this Universe.

His every quality finds an expression:
Eternity becomes the verdant field of Time and Space;
Love, the life-giving garden of this world.
Every branch and leaf and fruit
Reveals an aspect of His perfection-
They cypress give hint of His majesty,
The rose gives tidings of His beauty.

Whenever Beauty looks,
Love is also there;
Whenever beauty shows a rosy cheek
Love lights Her fire from that flame.
When beauty dwells in the dark folds of night
Love comes and finds a heart
entangled in tresses.
Beauty and Love are as body and soul.
Beauty is the mine, Love is the diamond.

They have together
since the beginning of time-
Side by side, step by step.

 

Birdsong

Birdsong brings relief
to my longing
I'm just as ecstatic as they are,
but with nothing to say!
Please universal soul, practice
some song or something through me!






The legend of the Thornbird


There is a legend about a bird which sings just once in its life, more sweetly than any other creature on the face of the earth. From the moment it leaves the nest it searches for a thorn tree, and does not rest until it has found one. Then, singing among the savage branches, it impales itself upon the longest, sharpest spine. And, dying, it rises above its own agony to out- carol the lark and the nightingale. One superlative song, existence the price. But the whole world stills to listen, and God in His heaven smiles. For the best is only bought at the cost of great pain… Or so says the legend.A mysterious bird who sings just once in life, the sweetest song ever to be heard. In fierce pursuit of the thorn tree, the Thornbird leaves its nest and does not rest until it has fulfilled its final quest. Silent its entire life until the final hour, its voice begins to float through the air and the whole world stops to listen to the music from the tree. And God looks down and smiles upon the beautiful melody. More lovely than the Nightingale, more melodious than the Lark, the very first song it sings comes flowing from its heart before dying among the thorns. What kind of bird would save so sweet a song until the end of its life? Its months of utter silence and then one single ballad to transcend toward the heavens. Who is this peculiar creature, who would so beguile and mystify us with its exotic, bewildering and transforming song?“When we press the thorn to our chest we know, we understand, and still we do it.” “Each of us has something within us which won't be denied, even if it makes us scream aloud to die. We are what we are, that's all. Like the old Celtic legend of the bird with the thorn in its breast, singing its heart out and dying. Because it has to, its self-knowledge can't affect or change the outcome, can it? Everyone singing his own little song, convinced it's the most wonderful song the world has ever heard. Don't you see? We create our own thorns, and never stop to count the cost. All we can do is suffer the pain, and tell ourselves it was well worth it.”  The Thornbird pays it's life for that one song, and the whole world stills to listen, and God in his heaven smiles, as it's best is brought only at the cost of great pain; Driven to the thorn with no knowledge of the dying to come. But when we press the thorn to our breast, we know, we understand.... and still, we do it." The bird with the thorn in its breast, it follows an immutable law; it is driven by it knows not what to impale itself, and die singing. At the very instant the thorn enters there is no awareness in it of the dying to come; it simply sings and sings until there is not the life left to utter another note.
n hey do u believe it too like moi“For the best is only bought at the cost of great pain”Hmmmm???

किस भगवान को किस रंग का फूल चढ़ाएं





 हम पूजा के दौरान भगवान को इसी भाव से फूल चढ़ाते हैं कि हमारा जीवन भी सुगंध और सौंदर्य से भरा हो।  पूजा  में अलग-अलग देवता को अलग-अलग रंग के फूल चढ़ाने की परंपरा है। कौन देवता किस रंग के फूल से प्रसन्न होते हैं.... 

सूर्य: लाल फूल सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। पूजा में सूर्य को लाल रंग के फूल चढ़ाने का विधान हैं। सूर्य को लालिमा प्रिय है। वे तेज के पुंज हैं। लाल रंग तेज का प्रतीक है। इसलिए सूर्य पूजा में लाल कनेर, लाल कमल, केसर या पलाश के फूल चढ़ाने का विधान है।

शिव: सफेद फूल शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला। पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं के लिए जो फूल त्याज्य हैं, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है। गणेश  लाल फूल गणोश प्रथम पूज्य हैं। वे मंगलमूर्ति हैं, मंगल के प्रतीक, मंगल करने वाले।गणेश   को लाल रंग के फूल प्रिय हैं। लाल रंग मंगल का प्रतीक है।   गणेश विशाल  व्यक्तित्व वाले हैं लेकिन जिस तरह चूहा उनका वाहन है वैसे ही दुर्वा उन्हें प्रिय है। यह इस बात का प्रतीक है कि जितना बड़ा व्यक्तित्व होगा वह बहुत छोटे के प्रति भी अपनत्व का भाव रखेगा। विराट व्यक्तित्व वाले  को घास के तिनकों के रूप में दुर्वा इसी भाव में प्रिय है

 


 


 विष्णु: पीले फूल विष्णु पीतांबरधारी हैं। पीला रंग उन्हें प्रिय है। सामान्यतया विष्णु पूजा में सभी रंगों के फूल अर्पित किए जाते हैं लेकिन पीतांबरप्रिय होने के कारण पीले रंग का फूल अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। कमल का फूल विष्णु को बहुत प्रिय है। देवी: लाल और सफेद फूल लक्ष्मी को लाल और पीले, दुर्गा को लाल और सरस्वती को सफेद रंग के फूल अर्पित करने की परंपरा है। लक्ष्मी सौभाग्य की प्रतीक है अत: लाल रंग प्रिय है। विष्णु की पत्नी होने से वे पीले रंग के फूल से भी प्रसन्न होती हैं। दुर्गा शक्ति की प्रतीक है। लाल रंग शौर्य का रंग है। अत: वे लाल रंग के फूल से प्रसन्न होती हैं। सरस्वती ज्ञान और संगीत की देवी है। शुभ्रता की प्रतीक। उन्हें सफेद रंग के कमल पुष्प अर्पित किए जाते हैं।